सरमद काशानी: बिना कपड़ो के रहने वाला फ़क़ीर

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परिचय:
सरमद कशानी, जिन्हें नंगे फ़क़ीर के नाम से भी जाना जाता है, एक अध्भुत शख्सियत थे, जिनका जीवन सामाजिक मानदंडों से परे था और जिनकी शिक्षाएँ सत्य और आध्यात्मिक मुक्ति के चाहने वालों के लिए आज भी प्रेरणादायक हैं। दिल्ली में प्रतिष्ठित जामा मस्जिद के पास स्थित उनकी दरगाह है जहाँ आज भी लोग माथा टेकते है। और यह जगह आज भी उस तारीख में रहे इस आज़ाद ख़यालों से भरे शख्स की याद का पुख्ता सबूत है। सरमद , दारा शिकोह के काफी करीब थे। दारा शिकोह को भिक्षुकों, दीवानों आशिकों का साथ पसंद था। इसीलिए उसने सरमद को अपने समूह में शामिल कर लिया.’ दुनिया को देखने के सरमद और दारा शिकोह के नजरिए लगभग एक सामान थे।

जामा मस्जिद के पास दरगाह:
दिल्ली की चहल-पहल भरी सड़कों के बीच राजसी जामा मस्जिद के पास, सरमद कशानी की दरगाह है। सरमद और हरेभरे शाह के मज़ार साथ-साथ बने हुए है। इन्हें मानने वालों में हर धर्म, हर जाति के लोग हैं. पहले मज़ार का रंग लाल है। जो सरमद की क्रूर हत्या का प्रतीक है यानी खून का। दूसरे का रंग हरा है जो कि हरेभरे शाह के नाम पर ही है। हरेभरे शाह सरमद के अध्यात्मिक गुरु भी थे। लोग सरमद की मजार पर मन्नतों के धागे बांधते हैं, ताले भी लगाते हैं, अपनी मन्नतों को चिट्ठियों में लिख कर वहीं रख आते हैं। उनका विश्वास है कि सरमद उनकी मन्नतों का जवाब जरूर देंगे। ये ऐसा तीर्थस्थल हैं जहां जाने के लिए किसी को, किसी भी तरह की कोई रोक-टोक नहीं है। मर्द-औरत सब बराबर हैं यहां।

उदार विचार और आध्यात्मिक ज्ञान:
सरमद कशानी की शिक्षाओं की विशेषता उस वक्त की स्थापित धार्मिक रूढ़िवाद के सामने एक क्रांतिकारी सोच थी । वह सीधे आध्यात्मिक अनुभव में विश्वास करते थे और उस वक्त के कर्मकांडों की आलोचना करते थे जो की वास्तविक आध्यात्मिक खोज से अलग हो गए थे। सरमद ने आंतरिक सत्य और प्रामाणिकता के महत्व पर जोर दिया, व्यक्तियों को सामाजिक व्यवस्थाओ से पार जाने और अपने भीतर परमात्मा से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। उदात्त उपमाओं और गहन ज्ञान से ओत-प्रोत उनकी कविता और लेखन, काफी प्रेरित और उत्तेजित करती हैं।

सरमद और समलैंगिकता :
अभय चंद नाम के एक युवा हिंदू व्यक्ति के साथ सरमद का रिश्ता उसकी कहानी का एक अभिन्न हिस्सा है। उनका बंधन पारंपरिक मित्रता के दायरे से परे चला गया, जो एक गहरे भावनात्मक और आध्यात्मिक संबंध का प्रतिनिधित्व करता है। अभय चंद के लिए सरमद के अटूट प्रेम ने सामाजिक मानदंडों को चुनौती दी और धार्मिक सीमाओं को पार किया। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सरमद के समय में यौन अभिविन्यास और लिंग पहचान की समझ समकालीन समझ से भिन्न थी, और अभय चंद के साथ उनका रिश्ता समलैंगिकता की आधुनिक समझ के बजाय गहरा आध्यात्मिक प्रेम था। कुछ इतिहास करों ने यह भी अनुमान लगाया की कौन सी परिस्थितियां थीं या ऐसे क्या कारण थे कि सरमद बिना कपड़ों के रहने लगे। कहा जाता है कि वो अभय के साथ रहना चाहते थे लेकिन उन्हें अलग कर दिया गया. वे एक दूसरे से अलग होकर टूट गए जैसे. पहले सरमद अभय के घर गए थे वहां अभय चंद के पिता के सामने उन्होंने अपने सारे कपड़े उतार दिए और कहा कि वह दुनिया की परवाह नहीं करते। उनके प्रेमी के अलावा उनके जीवन में और किसी चीज का कोई महत्व नहीं। सरमद ने अपनी सारी धन संपत्ति और दुनियावी चीजें पूरी तरह त्याग दी थी। उनके पास सिर्फ उनके कपड़े बचे थे, उसे भी सरमद ने उतार फेंका।

सरमद , दारा शिकोह और औरंगज़ेब :
सरमद , दारा शिकोह के दोस्त भी थे , और गुरु भी। सरमद ने दारा शिकोह के युद्ध जितने की भविष्यवाणी की थी लेकिन हुआ उसके उलट। औरंगजेब ने बड़ी बेरहमी से दारा शिकोह को मौत के घाट उतार दिया और अब सरमद की बारी थी। औरंगज़ेब को इस नंगे फ़क़ीर की लोकप्रियता के बारे में ज्ञान था। वह जनता था इसे मरना आसान नहीं होगा। उसने सरमद को दरबार में बुलायाऔर उसकी गलत भविष्य वाणी के बारे में याद दिलाया। सरमद ने जवाब दिया- ‘मैंने ये नहीं कहा था कि वो इस दुनिया का शहंशाह बनेगा। मैंने तो आने वाली दुनिया के बारे बात की थी. वो उस दुनिया का शहंशाह होगा। औरंगज़ेब ने उसे फिर कलमा पड़ने को कहा लेकिन सरमद ने पूरा कलमा नहीं पढ़ा सिर्फ इतना कहा- ‘ला इलाह’ मतलब ‘ईश्वर नहीं है। ” काज़ी ने लोगों को चीख-चीख कर ये बात बताई – ‘देखो, तुम्हारा ये फकीर क्या कहता है. ये ईश्वर को नहीं मानता। देख लो ये कैसा शैतान हैं। ‘ सरमद को सड़कों-गलियों में घसीटते हुए ले जाया गया और उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया गया।

कहा जाता है कि धरती से जाते वक़्त सरमद की देह ने अपने कटे हुए सिर को हाथ में ले लिया और नाचने लग। फिर नाचते हुए ही उसने पूरा कलमा पढ़। उसने अपने अल्लाह को पा लिया था। अब सरमद को उसका ईश्वर मिल गया था. सरमद अपना कटा सिर लेकर शाह की मजार की तरफ चल दिया. वहीं मजार के पास वो गिर गया और वहीं दफन भी हो गया। शायद यह बात काल्पनिक हो मगर सरमद का अपने हाथों में सिर लेकर नाचना हिन्दू धर्म की देवी काली की याद दिलाता है। दो धर्मों के मिथकों का इस तरह मिलना सुखद संयोग है। औरंगज़ेब के दरबारियों ने सरमद पर दो और आरोप भी लगाए थे। जिसमें से एक आरोप था कि वो हमेशा नंगे घूमा करते है।

शाहजहां और औरग़ज़ेब के दरबार में रहने वाले चिकित्सक बर्नियर के एक कथा को सरमद की नग्नता वाली कथा के सन्दर्भ में याद किया जाता है- ‘मैं अक्सर इस नंगे फकीर को देखकर शर्मिन्दा हो जाता था। वो दिल्ली की गलियों में नंगा ही घूमा करता। वह औरंगज़ेब से या उसकी धमकियों से भी नहीं डरता था। उसने कपड़े पहनने से साफ़-साफ़ इंकार कर दिया था। कहा जाता है कि एक शुक्रवार (जुम्मे को ) जब सरमद जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर लेटे हुए थे, औरंगज़ेब वहां पहुंचा। उसने सरमद से पूछा कि वो शरिया को क्यों नहीं मानता? सरमद ने कहा- ‘जो पाप करते हैं उन्हें अपने पापों को छिपाने के लिए कपड़े पहनने की जरूरत पड़ती है। मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया कि मुझे कपड़े पहनने पड़ें। ‘ वहीं पास में एक कम्बल पड़ा था। सरमद ने औरंगज़ेब से कहा कि वो उसे कंबल ओढ़ा दे। जैसे ही औरंगज़ेब ने कंबल उठाया, कंबल के नीचे उसे कुछ कटे हुए सिर दिखाई दिए। ये उन्हीं लोगों के सिर थे जिनकी हत्या औरंगजेब ने की थी। उन सिरों को देखकर वह बुरी तरह डर गया। इस बारे में सरमद का कहना था- ‘मुल्ला कहते हैं अहमद स्वर्ग गए लेकिन स्वर्ग खुद ही अहमद के पास आया था। ‘ सरमद ने गला काटने की सजा के दौरान अपना चेहरा ढंकने से मना कर दिया था।

सजा के दौरान वे यही कहते रहे थे- ‘देखो नंगी तलवार लिए मेरा एक दोस्त सामने से चला आ रहा है। मैं उसे जानता हूँ। ‘

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