सुस्त रह गए भाई, नहीं थी फिल्म में कोई जान !

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पिछले शुक्रवार को रिलीज़ हुई सलमान की फिल्म “किसी का भाई किसी की जान ” ने उम्मीद से औसत प्रदर्शन किया है। शुक्रवार को ₹15 करोड़ की कम ओपनिंग के बाद, फिल्म ने शनिवार को ईद की छुट्टी के दिन ₹25 करोड़ कमाए और रविवार को इतने ही नंबर दर्ज किए। अब यह लगभग ₹66.5 करोड़ के कुल संग्रह पर है।

पिछले कुछ समय से हिंदी सिनेमा खराब दौर से गुजर रहा है। बड़े सितारे चमक खो रहे हैं और ज्यादातर फिल्में धूल फांक रही हैं। हालांकि शारुख की पठान ने बॉलीवुड को धैर्य की डोर पकड़ाई थी पर सलमान खान से वह डोर छूट ती नज़र आ रही है।

शायद भारत को अब चैंपियन की जरूरत नहीं है। खान को यह महसूस करने की जरूरत है कि अपने जिद्दी स्वैग से उन्होंने अपना कद कम कर लिया है।

अभी कुछ समय पहले, सलमान खान ने तर्क दिया था कि क्यों हिंदी फिल्में दक्षिण भारतीय हिट फिल्मों के डब संस्करण से पिछड़ रही हैं। यथार्थवादी (Realistic) सिनेमा और स्मार्ट फिल्म निर्माण पर कटाक्ष करते हुए कहा की यह फिल्में होती बहुत बढ़िया है! पर आम लोगो की समझ को नहीं दर्शाती”।


सलमान खान ने खुद को आम लोगो के बड़े भाई या जनता के “भाईजान” के रूप में स्थापित कर लिया है । लेकिन जैसा कि टिकट खिड़की पर उनके नवीनतम ट्रैक रिकॉर्ड से पता चलता है – “किसी का भाई किसी की जान” हाल के दिनों में उनकी दूसरी सबसे कम ओपनिंग है, सप्ताह के अंत में अपने फैन्स की वफादारी के चलते उनेह आकड़ों में कुछ बढ़त मिली है। – लेकिन यह आकड़े फिर भी संतोष जनक नहीं है।

पहली बार जिस शख्स पर बॉलीवुड ने सैकड़ों करोड़ कमाने का भरोसा किया ताकि दूसरे , नए प्रयोग किये जा सके , उस शख्स को इस बार काफी बड़ा धक्का लगा है । उनकी मनोरंजक परीकथाओं का ब्रांड अब बहुत आउटडेटिड है , जहां बीच-बीच में बेमतलब जैकेट उतारना रीयलिस्टिक भी नहीं लगता उल्टा सामान्य बुद्धि का अपमान है।

ऐसा नहीं है कि सलमान खान को शुरुआत में अपनी जगह के बारे में नहीं पता था। कुछ भी हो, पटकथा लेखक सलीम खान के बेटे होने के नाते सलमान ने महत्वाकांक्षी ना होते हुए, समझदार बनकर अपने करियर की पटकथा लिखी है लेकिन अब वह बुरी तरह से भटक चुके है।

समस्या यह बन पड़ी है की की सलमान खान एक नाम नहीं पर एक ब्रांड बन गया है। और सलमान खान खुद भी यह मानते है कि वह जीवन से इतने बड़े है कि उनके आगे कुछ भी मायने नहीं रखता। यह बातें उनेह उनके आस पास के लोग या चमचे बार बार जताते है। शायद तभी फिल्म की कहानी कोई मायने नहीं रखती सिर्फ भाईजान का होना ही फिल्म हिट करने की गरंटी है ।

सलमान को यह जानने की जरूरत है कि भारत का डिजिटल नागरिक अपनी बढ़ती उम्र की मांसपेशियों के निर्माण की तुलना में तेजी से विकसित हुआ है।instagram ने हर किसी आदमी को दुनिया को एंटरटेन करने का अधिकार दिया है। हॉलीवुड में भी एवेंजर्स सीरीज की सफलता ने दिखा दिया है कि एक अकेला सुपरहीरो दुनिया को नहीं बचा सकता। अब लोगो को सुपर हीरोज की कहानी से ज़्यादा आम आदमी की सुपर हीरो बनने की कहानी लुभाती है।

सलमान खान को भी अब सही में आत्म मंथन की और अच्छी कहानियो की ज़रूरत है क्यूंकि अब अकेला “सलमान खान” होना ही काफी नहीं।

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