
यह किस्सा सुभाष चंद्र बोस की जर्मनी यात्रा का है। जब द्वित्य विश्व युद्ध के दौरान सुभाष चंद्र बोस, भारत की आजादी के लिए हिटलर से समर्थन मांगने गए। जब वह हिटलर के आवास पर पहुंचे तो हिटलर के कर्मचारियों ने उनका स्वागत किया और उन्हें कार्यालय के बाहर प्रतीक्षा करने का निर्देश दिया। नाज़ियों का वह कार्यालय बहुत ही सुन्दर रूप में सजा हुआ था, लेकिन वहां कुछ ही लोग बैठे थे।सामने की दीवार पर दो बड़े नक़्शे थे – एक यूरोप और एशिया का ……. और दूसरा, ऐसा ही एक…. जो जर्मनी के युद्ध मोर्चों को रेखाकिंत करता था।
नेताजी को सूचित किया गया था कि हिटलर एक महत्वपूर्ण बैठक में हैं। और जैसे ही वह खत्म होती हैं, आप उनसे मिल सकते है ।
नेताजी प्रतीक्षा करने को तैयार हो गए और अखबार पढ़ने लगे। हालांकि, काफी समय बीत गया लेकिन हिटलर बाहर नहीं आया । कुछ देर बाद हिटलर अपने कार्यालय से बाहर आया, नेताजी को उसने देखा पर उनसे मिला नहीं। ना ही नेताजी उठ के हिटलर के पास गए।
कुछ समय बाद हिटलर, नेताजी के पास से गुजरा लेकिन उनसे मिला नहीं। नेताजी ने भी वही व्यवहार दोहराया। ऐसा कई बार चला।
अंत में हिटलर आया, नेताजी के पास गया और चुपचाप खड़ा हो गया। नेताजी ने नहीं देखा और पढ़ने में मग्न रहे। इस पर हिटलर, नेताजी के पीछे गया और नेताजी के कंधे पर हाथ रख दिया। हिटलर के इस अंदाज़ पर नेताजी उसकी ओर देखते हैं और कहते है : “हिटलर”।
हिटलर ने वापस पूछा “आप इतने निश्चित होकर कैसे कह सकते हैं, की मैं ही हिटलर हूँ ?”। इस पर नेताजी ने जवाब दिया, “असली हिटलर के अलावा किसी में इतना दुस्साहस नहीं है कि मेरे कंधे पर हाथ रखे।”
जाहिर तौर पर किसी भी अन्य नेता की तरह हिटलर ने भी अपने दुश्मनों को बेवकूफ बनाने के लिए कई हमशक्ल रखे, लेकिन वह महान नेताजी को बेवकूफ नहीं बना सका।
नेताजी उठे और उपहार में लिपटा एक बक्सा हिटलर की ओर बढ़ाया। हिटलर मुस्कुराया और उत्साह से उसे खोल दिया। अंदर तांबे के रंग की मूर्ति थी। हिटलर नंगे बदन की मूर्ति को घूरता रहा। हिटलर के हाथों में एक बुद्ध की लाजवाब मूर्ति थी। जिसमे बुद्ध पद्मासना, कमल की मुद्रा में बैठे थे। यह उपहार बहुत ही सुन्दर था। हिटलर कई मिनट तक मूर्ति को देखता रहा, पहचान नहीं पाया। फिर अपने नथुनों को फड़फड़ाते हुए पूछा, “यह पहलवान कौन है?”
“भगवान बुद्ध, बौद्ध धर्म के संस्थापक। उन्होंने शांति, अहिंसा और करुणा की शिक्षा दी।
“शांति? अहिंसा? तो यह सज्जन मिस्टर गांधी से सीनियर हैं या जूनियर हैं?” हिटलर ने पूछा, अभी भी वह हाथ में सजी मूर्ति की जांच कर रहा है।
नहीं, यह हम सबसे Senior हैं, और हम भारतीयों के प्रेरणास्त्रोत भी ‘ नेताजी ने उत्तर दिया।
“बहुत बढ़िया ! तो चलिए फिर बातों का सिलसिला शुरू करें ,” यह कह के हिटलर ने नेताजी को अंदर बैठक में आने के लिए निमंत्रित किया|
कमरे में पहले तो कोई नहीं बोला। वहां उम्मीद से भरा सन्नाटा छा गया। फिर हिटलर ने जर्मन भाषा बोलना शुरू किया। ट्रॉट जो की एक उच्च पद का सिपाही था , उसने ट्रांसलेटर की भूमिका निभाई।
मुस्कराते हुए हिटलर ने पूछा, “बर्लिन में आपका प्रवास कैसा रहा? और फ्री इंडिया सेंटर, द इंडियन लीजन का काम कैसा चल रहा है?”
सुभाष बोले: बढ़िया चल रहा हैं। हिटलर ! ,स्वतंत्र भारत की मेरी प्रबल इच्छा मुझे यहाँ खींच लाई। हम भारतीयों को अपनी आजादी के लिए कड़ा संघर्ष करना होगा, हम अपना खून बहाने के लिए तैयार हैं, लेकिन हमें तीन शक्तियों, जर्मनी, इटली और जापान जैसे दोस्तों के समर्थन की भी जरूरत है। तभी हम अंग्रेजों को सबक सिखा सकते हैं।”
कुछ पल की शांति के बाद हिटलर कुछ कठोर स्वर में बोला। “मुझे लगता है कि भारतीय आत्मा कमजोर हो गई है।” “अड़तीस करोड़ लोगों का एक विशाल देश और आप इंग्लैंड से आये दो हजार बाहरी लोगों को अपने देश पर आक्रमण करने की अनुमति देते हैं, वह आपको गुलाम बना दे देते हैं, वो भी दो सौ साल तक। यदि मेरे पास लोगो की इतनी बड़ी संख्या होती और इतनी विशाल संपत्ति होती, तो मैं सिकंदर महान की तरह विश्व विजेता बन गया होता।”
सुभाष ने इसे अपने देश का अपमान समझते हुए , थोड़े तीखे स्वर में बोला , “मिस्टर हिटलर !, अंग्रेजों ने मेरे देश को लोहे की सलाखों वाली जेल में बदल दिया है।”
“उन सलाखों को तोड़कर, उसी गुलाम राष्ट्र का एक युवा नेता कई मीलो का रास्ता तय कर , तुम्हरे सामने खड़ा हैं । बिना किसी संसाधन के , और बिना किसी व्यवस्था के। “
” बावज़ूद इसके अपने मन में सिर्फ एक सहज विश्वास लिए , इस दुनिया के सबसे बड़े कमांडरों में से एक के सामने खड़ा होने की हिम्मत कर सकता हैं , उसके सामने अपनी दोस्ती का हाथ बढ़ाता हैं , और बातचीत के लिए जमीन तैयार करता है। “
“मिस्टर हिटलर , क्या यह आपके सामने भारत के साहस का जीवंत उदाहरण नहीं हैं , फिर कैसे आप भारत पर अपनी मर्दानगी खो देने का आरोप लगा सकते हैं?”
हिटलर नेताजी की बात से प्रभावित हुआ। हिटलर ने नेताजी के साहस और उनके अपने देश के प्रति प्रेम की सराहना भी की ।
हिटलर आगे बोला : “भारत को आप जैसे नेताओं की जरूरत है, मैं यकीन से कह सकता हूँ , अगर आप जैसे नेता रहे तो भारत जल्द ही
अपनी गुलामी से छुटकारा पा लेगा।”