दोस्ती की कहानियां (भाग -01)

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दोस्ती प्यार है या व्यापार ?

एक गाँव में सुधीर और किशन नाम के दो मित्र रहते थे। सुधीर एक अमीर परिवार से था और किशन एक गरीब परिवार से था। हैसियत में अंतर होने के बावजूद दोनों पक्के दोस्त थे। साथ में स्कूल जाना, खेलना, खाना-पीना, बातें करना। उनका ज्यादातर समय एक-दूसरे के साथ ही बीतता था।

समय बीतता गया और दोनों बड़े हो गए। सुधीर ने अपना पारिवारिक व्यवसाय संभाला और किशन को एक छोटी सी नौकरी मिल गई। सिर पर जिम्मेदारियों का बोझ आ जाने के बाद दोनों के लिए पहले की तरह एक दूसरे के साथ समय बिताना संभव नहीं हो पा रहा थ। जब भी मौका मिलता, जरूर मिलते ।

एक दिन सुधीर को पता चला कि किशन बीमार है। वह उससे मिलने उसके घर आया था। उनका हाल पूछने के बाद सुधीर वहां ज्यादा देर नहीं रुके। उसने अपनी जेब से कुछ पैसे निकाले और किशन को थमाते हुए वापस चला गया।

सुधीर के इस व्यवहार पर किशन को बहुत दुख हुआ। लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। ठीक होने के बाद उसने बहुत मेहनत की और पैसों का इंतजाम किया और सुधीर के पैसे वापस कर दिए।

अभी कुछ ही दिन बीते थे कि सुधीर बीमार पड़ गया। जब किशन को सुधीर के बारे में पता चला तो वह अपना काम छोड़कर सुधीर के पास भागा और तब तक उसके पास रहा जब तक वह ठीक नहीं हो गया।
किशन के उसके व्यवहार ने सुधीर को उसकी गलती का एहसास कराया। वह अपराध बोध से भर गया। एक दिन वह किशन के घर गया और उससे अपने किये के लिए क्षमा माँगते हुए बोला, “मित्र! जब तुम बीमार थे, तो मैं तुम्हें पैसे देने आया था। लेकिन जब मैं बीमार हुआ, तो तुम मेरे साथ रहे। मुझे अपने किए पर बहुत शर्म आती है। मुझे माफ़ कर दो।

किशन ने सुधीर को गले से लगा लिया और कहा, “कोई बात नहीं दोस्त। मुझे खुशी है कि तुमने यह महसूस किया है कि दोस्ती में पैसा महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि एक दूसरे के लिए प्यार और देखभाल मायने रखती है।

————–

“हमारी दोस्ती अभी भी ज़िंदा है।”

बचपन के दो दोस्तों का सपना था कि बड़े होकर सेना में भर्ती होंगे और देश की सेवा करेंगे। दोनों ने अपने सपने को पूरा किया और सेना में शामिल हो गए।

बहुत जल्द ही उन्हें देश की सेवा करने का मौका भी मिल गया। युद्ध छिड़ गया और उन्हें लड़ने के लिए फ्रंट पर भेजा गया। वहाँ जाकर दोनों ने वीरतापूर्वक शत्रुओं का सामना किया।

गोलाबारी के दौरान एक दोस्त बुरी तरह घायल हो गया। दूसरे दोस्त को जब इस बात का पता चला तो वह अपने घायल दोस्त को बचाने के लिए दौड़ा। तब उसके कप्तान ने उसे रोका और कहा, “अब वहाँ जाने का कोई मतलब नहीं है। जब तक तुम वहाँ पहुँचोगे, तुम्हारा दोस्त मर चुका होगा।”

लेकिन वह नहीं माना और अपने घायल दोस्त को लेने चला गया। जब वह वापस आया, तो उसके कंधे पर एक दोस्त था। लेकिन वह मर चुका था। यह देखकर कप्तान ने कहा, “मैंने तुमसे कहा था कि वहाँ जाने का कोई मतलब नहीं है। तुम अपने मित्र को सुरक्षित नहीं ला सके। तुम्हारा जाना व्यर्थ था।”

सिपाही ने जवाब दिया, “नहीं साहब, उसे लेने जाना मेरा व्यर्थ नहीं था। जब मैं उसके पास पहुंचा तो वह मेरी आंखों में देखकर मुस्कुराते हुए बोला- दोस्त, मुझे यकीन था, तुम जरूर आओगे। ये उसके आखिरी शब्द थे।” मैं उसे नहीं बचा सका। लेकिन हमारी दोस्ती बच गयी, वह अभी भी ज़िंदा है । “

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