बुलंद हौसले

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जमीन के एक हिस्से मैं एक बिल था उस बिल में चींटिओं का झुंड रहता था। उस बरस काफी बारिश हो रही थी। बिल के सभी चिटिओं ने सोचा अगर पानी की गति तेज होंगी तो यह बिल भर जायेगा। और हम सब मर जाएंगे, इसलिए हमें किसी उच्ची जगह पर चले जाना चाहिए। हर कोई अपना घर छोड़ते हुए दुखी था लेकिन क्या करते? बारिश के पानी का बहाव और स्तर बहुत तेज़ी से बढ़ता जा रहा था। उनके पास और कोई चारा नहीं था। सिवाय इसके की वह अपना घर छोड़ दे।

सब ने तय किया की वह सभी कुछ ही दूरी पर बने एक ऊँचे टीले पर चढ़ेगे। कुछ चींटिआँ ट्टीले पर चढ़ने लगीं। वे कुछ दुरी पर पहुंचे ही थे तभी बारिश हल्की होने लगी।

नीचे खड़ी कुछ चींटिआँ भी थी जिन्हें बाद में टीले पर चढ़ना था , उन्होनें आवाज दिया , अरे बारिश धीमी हो गयी हैं , ज्यादा ऊपर मत चढ़ो , “उतर जाओ नहीं तो फिसल कर उपर से गिर जाऊँगी”।

यह सुन के चिट्टिआँ उतरने लगी और जो आगे जा सकते थी, वे भी डर के कारण तुरंत नीचे आ गए ।

लेकिन एक चिंटी चढ़ती गयी, सबने उसे बहुत आवाज लगाई। चिल्ला – चिल्ला कर रोकने की कोशिश की।

लेकिन वह चढ़ी ही जा रही थी ….सबने कहा “यह पागल हैं।इसे मरना हैं तो मरने दो”।

कुछ देर बाद उसके पैर फिसलने लगे लेकिन वह हाथों के सहारे और बड़ी ही कठिनाइयों के बाद भी टीले पर चढ़ ही गयी।

कुछ दिनों तक बारिश ठीक ठाक हुई। कुछ चींटिआँ मर गयी, लेकिन ज्यादतर बच गयी।

जब बरसात खत्म हुई तो सभी चिट्टिआँ उस अकेली चिंटी के पास पहुंची, और जाकर उस चिंटी से पूछा – “तुम आखिर इस टीले पर कैसे चढ़ गई हमें भी बताओ , ताकि आगे से हम भी चढ़ सकें।

उस चिंटी ने कहा – मुझे ये बात मालूम थी कि अगर हल्की बारिश भी हुई तो नीचे खड़े अन्य चींटिआँ मुझे नीचे आने के लिए कहेंगी जिससे मेरा ध्यान चढ़ने से हट जायेगा और में डर कर नीचे आ जाऊँगी।

इसलिए में जब ऊपर चढ़ने लगी तब मेनें अपने दोनों कान को मिट्टी से बंद कर लिया था।

इसलिए जब वह टीले पर चढ़ रहीं थी। तब बाकि के चींटिआँ यह सुनकर की – ‘बारिश में फिसल कर गिर जाओगे’ हिम्मत हार गई।लेकिन मेंने ये सुना ही नहीं कि चढ़ना असंभव हैं।

में तो बस आगे चढ़ती गयी, चढ़ती गयी और अंत में वह टीले की चोटी तक पहुंच गई।

सभी चींटीओ ने उस चींटी के साहस और होंसले की तारीफ़ की और उसे अपने समूह का नेता और मार्ग दर्शक बना दिया।

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