
बीरबल, या राजा बीरबल, मुगल सम्राट अकबर के दरबार में हिंदू ब्राह्मण सलाहकार था । भारतीय उपमहाद्वीप में बीरबल की चालाक और चतुर बुद्धि पर ध्यान केंद्रित करने वाली कई प्रसिद्ध लोक कथाएँ मौजूद हैं। बीरबल को अकबर बादशाह द्वारा लगभग 1556-1562 के आसपास कवि और गायक के रूप में नियुक्त किया गया था। बीरबल का बादशाह के साथ निकट संबंध था, वह बादशाह के सबसे महत्वपूर्ण दरबारी समूह ‘नवरत्न’ … यानी नौ रत्नों में से एक था ।
लेकिन सिख इतिहास में बीरबल का एक और रूप देखने को मिलता है।बीरबल, अकबर के बनाये धर्म ‘दीन-ए-इलाही’ को अपनाने वाला एकमात्र हिंदू था। और इस वजह से वह अकबर के हमेशा करीबी सलाहकारों में से एक रहा। उसे अकबर से हमेशा प्रशंसा की दरकार रहती थी। दूसरे धर्मों की तरफ उसका स्वभाव नकरात्मक भी था ,जैसे की सिख़ धर्म। उस समय सिख़ धर्म के पांचवे गुरु थे, ‘गुरु अर्जन देव’। बीरबल उनकी बढ़ती प्रसिद्धि से व्याकुल रहता था। वह उनको मुग़ल शासन के लिए खतरा समझता था।
गुरु अर्जन के प्रति अपनी बढ़ती ईर्ष्या के कारण, बीरबल ने योजना बनाई और बादशाह से पंजाब में बसे प्रत्येक ‘खत्री’ जाति के घर पर एक रुपये का कर(tax) लगाने की अनुमति प्राप्त की। वहां के खत्रियों ने भुगतान से इनकार कर दिया और ‘गुरु अर्जन’ से शिकायत की।
‘गुरु अर्जन’ ने ‘बीरबल’ के अधिकारियों से बात की, : “कर, ….खत्रियों पर हैं लेकिन हम सिख हैं ,…. और इसीलिए हम छूट चाहते हैं। आज तक सरकार ने कभी भी गुरु के घर पर कोई कर(Tax) नहीं लगाया है। मेरी रसोई सिखों और संतों के प्रसाद से खुली रहती है।….. किसी को भी इसे लेने से मना नहीं किया जाता है। आपको जितना अनाज और खाना चाहिए,….. ले लीजिए, लेकिन मेरे पास आपको देने के लिए पैसे नहीं हैं।……. मैं भगवान के भरोसे रहता हूं।”
बीरबल यह सुनकर आग बबूला हो गया। उसने कहा, “मैं एक सेनापति हूं।…. गुरु ने सम्राट के आदेश की अवहेलना करने की हिम्मत कैसे की?”… इस बार ‘बीरबल’ ने कुछ सैनिकों को ‘गुरु अर्जन’ के पास संदेश के साथ भेजा, :…..”आप एक ‘खत्री'(Khatri ) हैं, एक प्रजा हैं, और हर तरह से राज्य के अधीन हैं। अगर आप मिलने आ जाओ तो अच्छा है; नहीं तो मैं तुम्हारे नगर ‘अमृतसर’ को नष्ट कर दूंगा।”
सैनिक गए, लेकिन गुरु का तिरस्कार भी करना नहीं चाहते थे। उनकी विपदा को भांपते हुए ‘गुरु अर्जन’ ने उन्हें संबोधित किया : …. “मेरे दोस्तों, मुझे किसी की परवाह नहीं है, न ही मैं किसी से डरता हूं। ‘राजा बीरबल’ को आने दो और वह जो चाहे करें। भगवान् मेरी रक्षा करेंगे ।”
गुरु के शब्दों और बीरबल के क्रोध से डरते हुए सैनिकों ने वापस जाकर बीरबल से झूठ कहा….” कि गुरु, अगले दिन आएंगे।”
बीरबल ने कहा,: … “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह एक संत हैं। उन्हें कल आना ही होगा, नहीं तो मैं अमृतसर को नष्ट कर दूंगा।”
दुर्भाग्य से बीरबल के लिए, भगवान के पास अन्य योजनाएँ थीं। उस रात बीरबल को अजीब सी चिंता और मानसिक बेचैनी के कारण नींद नहीं आई। इस बीच बादशाह की ओर से एक और आदेश आया जिसमें बीरबल को युसुफजियों (पठानों) के खिलाफ युद्ध में ज़ैन खान के साथ एकजुट होने के लिए कहा…. और इसके लिए बीरबल को अपनी सेना के साथ बिना समय गवाए जल्द ही रवाना होना पड़ेगा ।
इस आदेश को पाकर बीरबल बहुत निराश हुआ, क्योंकि उसके पास ‘गुरु अर्जन’ से बदला लेने का कोई समय नहीं था। उसनेअपने सिपाहियों को आदेश दिया कि वापस आने पर उसे ‘गुरु’ के बारे में याद दिलाएं और कहा कि अगर उसे अमृतसर के प्रत्येक घर से एक रुपया नहीं मिला, तो वह शहर को उसकी नींव तक गिरा देंगे।
गुरु की बोली याद आने पर बीरबल की आत्मा क्रोध से जल पड़ती थी । जब सिक्खों ने ‘गुरु अर्जन’ को बीरबल के गुस्से वाले शब्दों के बारे बताया , तो उन्होंने केवल इतना कहा, …..
“अगर ‘बीरबल’ लौट आए! तो ही वह हमें परेशानी देंगे।”
यह सुन सभी समझ गए कि बीरबल वापस नहीं आएंगे। बीरबल ने कमांडर-इन-चीफ ज़ैन खान से मिलने के लिए यात्रा शुरू की, लेकिन जैसे ही बीरबल और सेना रात में स्वात घाटी (वर्तमान पाकिस्तान) में एक तंग मार्ग से आगे बढ़े, अफगान पहाड़ियों में तैयार पदों पर प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने बीरबल की सेना पर हमला बोल दिया इस भीषण लड़ाई में मुग़ल सेना की भारी हार हुई , ‘बीरबल’ और 8000 से अधिक सैनिक मारे गए ।